पृथ्वी पर असंख्य किस्म के जीव-जन्तु रहते हैं। इनमे से कुछ सरल पदार्थों से स्वयं अपना भोजन बना लेने की क्षमता रखते हैं। इन्हे पेड-पौधे कहा जाता है। अन्य ऐसा नहीं कर पाते। वे अपने भोजन के लिए, प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से पेड-पौधो पर निर्भर रहते हैं। वे जन्तु कहलाते हैं। जन्तुओं में एक ऐसा गुण होता है जो पेड-पौधो मे नही होता । पेड-पौधे अपना स्थान परिवर्तन स्वय नहीं कर सकते जबकि जन्तु एक स्थान के दूसरे स्थान को जा सकते हैं। उन्हें भोजन की तलाश में अथवा प्रजनन हेतु उपयुक्त स्थान ढूढने के लिए अक्सर ही स्थान परिवर्तन करते रहना पड़ता है। कभी-कभी सुरक्षा की दृष्टि से भी इन्हें लम्बी-लम्बी यात्रायें करनी पड़ती है। ये यात्रायें दैनिक भी होती हैं, मौसम के अनुसार भी की जाती है और कभी-कभी जीवन मे केवल एक बार ही की जाती हैं।
सफेद भालू, जो उत्तरी ध्रुव के चारों ओर चक्कर काट जाता है, आर्कटिक टर्न पक्षी जो आर्कटिक से अंटार्कटिक तक की उडान भर जाता है, व्हेल जो सर्दी बिताने के लिए अंटार्कटिक महासागर से गर्म सागरो मे आ जाती है, गोल्डन प्लोवर पक्षी जो पूरे प्रशांत महासागर का चक्कर लगा जाता है, उसी प्रेरणावश यात्रा करता है जिसके वशीभूत होकर मेढक कुछ सौ मीटर की यात्रा करते हैं, गिलहरी एक वृक्ष से दूसरे पर जाती है और मक्खी एक खरगोश से दूसरे खरगोश पर।
ऐसी यात्रायें आमतौर से प्रवास यात्रा होती है। पर जन्तुओं की हर यात्रा प्रवास यात्रा नहीं होती। अगर एक चूजा बार-बार सड़क पार करता है या लेमिंग किसी दिन अचानक सागर की ओर चल पडता है अथवा टिड्डी दल किसी क्षेत्र की ओर उड जाता है, तो वह यात्रा जरूर है पर प्रवास यात्रा नहीं। प्रवास यात्रा या प्रवसन (माइग्रेशन) "ऐसी यात्रा है जिसमे जीव लौटकर उसी स्थान या क्षेत्र में आ जाता है जिससे उसने यात्रा आरम्भ की थी। यह किसी उद्देश्य से की गई यात्रा है- निरुद्देश्य भटकना मात्र नहीं है।"
आखिर जीव जन्तु प्रवास यात्रा करते ही क्यों हैं?
इसके बहुत से कारण हैं पर मुख्य दो हैं। पहला, उस स्थान का जहाँ वे रहते हैं, मौसम इतना खराब हो जाना कि जीवों के लिए जीवित रहना ही मुश्किल हो जायें और दूसरा, भोजन की बहुत अधिक कमी हो जाना। इस बात को कुछ विस्तार से समझाना जरूर होगा। मान लीजिये एक लोमडी वर्ष में 2000 खरगोश खाती है पर वह उस क्षेत्र मे साल भर नही रह सकती जहा खरगोश की कुल आबादी ही 2000 हो, क्योकि उस इलाके मे लोमडी को जीवित रहने के लिए प्रत्येक खरगोश को पकडता जरूरी होगा। पर ऐसा करना उसके लिए हमेशा सम्भव नहीं हो सकता। इसके लिए उसे दिन मे चौबीसों घंटे शिकार की तलाश में ही घूमना पडेगा। साथ ही वर्ष भर मे स्वयं लोमडी की भी वंश वृद्धि हो जायेगी। अपने बच्चो को जहाँ एक ओर उसे समय देना पड़ेगा, वहाँ उनके लिए भोजन भी जुटाना पड़ेगा। इसलिए उसे भोजन की तलाश मे प्रवास यात्रा करनी पडेगी।
यहाँ यह बताना भी युक्तिसंगत होगा कि एक स्थान विशेष की जलवायु एक जाति विशेष के गिद्ध के लिए बहुत उपयुक्त है। वह वहां की सर्दी, गर्मी, बरसात सह सकता है। पर उसके नवजात शिशु ऐसा नहीं कर पाते । इसलिए उस गिद्ध को अपने नवजात शिशुओं की रक्षा हेतु प्रवास-यात्रा करनी पड़ती है।
प्रवास यात्रा पर निकलने वाले जीव-जन्तु उस समय तक चलते (या तैरते अथवा उड़ते) रहते हैं जब तक उन्हें सही मौसम नही मिल जाता। मौसम के खराब हो जाने, खासतौर से बर्फ वगैरह के गिरने से भोजन की कमी हो जाती है। इसलिए जीव-जन्तु यात्रा समाप्त करते समय यह भी देखते है कि वहां भोजन काफी मात्रा में मिल सकता है या नहीं। अगर किसी जगह मौसम अच्छा हो पर भोजन को कमी हो तो उस जगह वे नहीं रुकते वरन् आगे बढ़ते जाते हैं।
प्रवास यात्रा का एक और बड़ा कारण है, ऐसी जगह की तलाश जहां बिना किसी खतरे के जीव-जन्तु अंडे या बच्चे दे सके। साँप, मेढक अनेक किस्मों के पक्षी तथा सालमन और ईल जैसी मछलियां इसीलिए प्रवास यात्रा करती हैं। वे अंडे देने के बाद अपने स्थान को लौट आती है ।
कुछ लोगों को यह भ्रम हो सकता है कि जीव-जन्तु केवल सर्दी मे ही यात्रा करते हैं। वास्तव में ऊपर बताये गये कारण उत्पन्न हो जाने पर वे गर्मी और बरसात में भी प्रवास यात्रा पर निकल पड़ते हैं। हमारे देश के ही कुछ पक्षी प्रजनन के लिए उत्तर प्रदेश के कुछ भागों से दिल्ली के चिडियाघर में चले आते हैं। यहाँ ये अंडे देते है। जब बच्चे बडे हो जाते है तब उन्हें लेकर वापिस चले जाते है। सहारा रेगिस्तान के कुछ पक्षी गर्मी के मौसम में उत्तर के कम गर्म स्थानों पर चलें जाते है।
भटकना नहीं― सुनिश्चित यात्रा
जैसा कि आप पढ़ चुके हैं प्रवास-यात्रा बिना किसी उद्देश्य के भटकना नहीं है वरन् आंतरिक प्रेरणा से की गई सुनिश्चित यात्रा है। इसीलिए प्रवास यात्रा के दौरान जीव-जन्तु अनेक बाधाओं के बावजूद भी अपने गंतव्य स्थान की और बढते जाते हैं। थल मार्ग से यात्रा करने वाले जीवों को अपनी प्रवास यात्राओं मे अधिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है। उन्हें गहरी नदियां पार करनी होती है, ऊचे पर्वत लाँघने होते है और गर्म मरुस्थलों को पार करना होता है। जलचरो को यह नहीं करना पड़ता। पर अनेक बार उन्हें तेज जलधाराओं के बहाव के विपरीत तैरना होता है। सालमन जैसी मछलियों को, जो नदियों में बहाव के विपरीत यात्रा करती है, ऊची-ऊंची छलागे लगा कर जलप्रपातों को पार करना होता है। साथ ही मछुआरों के जालों और शिकारी जीवों से भी बचना होता है। नभचरों को अपेक्षाकृत सबसे कम कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है यद्यपि तूफान, वर्षा तथा ऊंची इमारतें, मोबाइल टॉवर आदि उनकी यात्रा में बाधा पहुंचाते है। इसीलिये थल पर रहने वाले जीव-जन्तुओं की प्रवास-यात्रा सबसे छोटी और पक्षियों की सबसे लम्बी होती है। पक्षी सागर पर भी लम्बी-लम्बी, कई हजार किलोमीटर लम्बी यात्रा कर लेते है।
चित्र:- कौन जीव कितनी लंबी प्रवास-यात्रा करता हैं। |
कुछ वैज्ञानिकों का मत है कि पक्षियों और स्तनधारी प्राणियों में यह गुण उस समय विकसित हुआ था जब पृथ्वी पर अंतिम हिमयुग आया था। जब से पृथ्वी बनी, उसकी जलवायु कई बार ठंड़ी हुई और कई बार फिर गर्म हो गई। जब वह ठंड़ी हो जाती थी, उसके अधिकतर भाग बर्फ से ढ़क जाते थे। आज से लगभग 30 हजार वर्ष पहले भी ध्रुवों, खासतौर से उत्तर ध्रुव की हिमनदिया (ग्लेशियर) काफी नीचे आ गई थी। उस समय आज के यूरोप और उत्तर अमेरिका का अधिकतर भाग बर्फ से ढक गया था। उस समय ठंड़ की ऋतु में भयकर ठंड़ हो जाती थी। साथ ही भोजन भी कम हो जाता था। इसलिए विभिन्न किस्मों के जीव-जन्तु ठंड और भूख से बचने के लिए दक्षिण की ओर जा जाते थे। गर्मी की ऋतु आने पर मौसम कुछ सुखद हो जाता था तो वे फिर उत्तर की ओर लौट जाते थे। ऐसा हर सर्दी और गर्मी में, हजारों साल तक होता रहा। इतने समय मे जीव-जन्तुओं की कई पीढ़ियां बीत गई। इसलिए जीव-जन्तुओं को सर्दी मे गर्म प्रदेशों मे आने की तथा गर्मी के दिनों में लौट जाने की आदत हो गई। यह आदत पीढ़ी-दर-पीढी चलती रही और आज भी चल रही है।
पर ज्यादातर वैज्ञानिक यह मानते है कि प्रवास यात्रा की आदत आखिरी हिमयुग से कही पुरानी है। जीव-जन्तु आखिरी हिमयुग से पहले भी प्रवास यात्रा करते थे। साथ ही ऐसे जीव जन्तु भी प्रवास यात्रा करते हैं जो हिमयुग के समय भी गर्म प्रदेशों में रहते थे। वैसे अलग-अलग किस्मों के जीव-जन्तुओं मे यह गुण अलग-अलग तरीको से, भिन्न-भिन्न समय, विकसित हुआ होगा। कुछ लोगों का यह भी मत है कि प्रवास-यात्रा करने का गुण जीव-जन्तुओं को उनके विकास-क्रम मे ही प्राप्त हो गया था। यह गुण उनके 'जीनो' में ही अंकित हो गया है। यह गुण उन्हे कैसे भी प्राप्त हुआ हो पर इतना जरूर है कि इस गुण के फलस्वरूप जीव-जन्तु बेहतर तरीके से अपनी रक्षा कर लेते है और विषम परिस्थितियों में भी जीवित रहे आते है। इस बारे में ब्रिटेन मे रहने वाले एक पक्षी का उदाहरण अक्सर दिया जाता है। इसका नाम है सॉन्ग थ्रश (Song thrush)। इस जाति के कुछ पक्षी सर्दी के दिनों में गर्म देशों को चले जाते है पर कुछ ब्रिटेन में ही रहते हैं। जिस साल तेज सर्दी पडती है, गर्म देशो को चले जाने वाले पक्षी कम मरते हैं पर ब्रिटेन मे रह जाने वाले पक्षी अधिक तादाद मे मरते है।
प्रवासी जीव-जंतुओं मे सबसे ज्यादा अध्ययन पक्षियों का किया गया है। इसलिए पहले उन्हीं की प्रवास यात्राओं की चर्चा हम अगली पोस्ट में करेंगे।
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